जादूगरों से भरा राजस्थान का ये गांव३ जहां हर कोई दिखाता है कमाल का जादू!

BHILWARA
Spread the love

पानी पर तैरी शिला, पाइप पर उल्टी बाइक, कांच पर खड़ी जेसीबी देखते रह गए लोग



शाहपुरा/बून्दी-मूलचन्द पेसवानी
राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों में कई ऐसे रहस्य छिपे हैं, जो आज भी लोगों को आश्चर्यचकित कर देते हैं। इन्हीं में से एक है बूंदी जिले का बड़ोदिया गांव एक ऐसा गांव जिसे जादूगरों का गांव कहा जाए तो गलत नहीं।

यहां हर वर्ष भाई दूज के दिन मनाया जाने वाला घास भैरू महोत्सव अपने अनोखे और हैरतअंगेज करतबों के लिए देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्ध है। गुरुवार को आयोजित इस महोत्सव में इस बार भी ऐसे-ऐसे कारनामे देखने को मिले कि दर्शकों की आंखें खुली की खुली रह गईं।


क्या आपने कभी पानी में डूबने वाली भारी शिला को तैरते देखा है? शायद कभी नहीं। पर बड़ोदिया में यह चमत्कार हर साल होता है।
बाबा कालाजी की बावड़ी में कलाकारों ने भारी पत्थर की एक शिला पानी में उतारी और वह तैरने लगी। यहीं नहीं, उस शिला पर मोटरसाइकिल भी खड़ी कर दी गई। न शिला डूबी, न बाइक हिली!
इस दृश्य को देखने के लिए जमा भीड़ आश्चर्य से भर उठी और तालियों की गूंज से पूरा प्रांगण गूंज गया।


घास भैरू की सवारी के दौरान कलाकारों ने एक और कमाल कर दिखाया। एक मजबूत लोहे के पाइप पर बाइक को उल्टा लटका दिया गया। बिना किसी सहारे या रस्सी की पकड़ के, बाइक पाइप पर टिकी रही।
यह नजारा देखकर बच्चे ही नहीं, बड़े और विदेशी मेहमान भी दंग रह गए।


कांच की नन्ही किरचें किसी को चुभ जाएं तो दर्द असहनीय होता है, लेकिन यहां कांच के टुकड़ों पर जेसीबी मशीन को खड़ा कर दिया गया।
लोग अवाक!
इतना भार और कांच का एक टुकड़ा भी नहीं टूटा।
यह करतब महोत्सव की अद्भुत आकर्षक झांकी के रूप में यादगार बन गया।


बड़ोदिया गांव बूंदी शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है। यहां घास भैरू महोत्सव सदियों से एक परंपरा के रूप में मनाया जा रहा है।
दिवाली के दो दिन बाद भाई दूज को यह आयोजन होता है, जिसमें गांव के सभी लोग अपने पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते हैं।
युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में इस जादुई प्रदर्शन का हिस्सा बनता है।
इस वर्ष भी हाड़ौती क्षेत्र ही नहीं, दिल्ली, मुंबई, जयपुर और विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचे और इस अनोखी कला के साक्षी बने।

लोकनृत्य और संस्कृति का अनूठा संगम

करतबों के साथ

परंपरागत लोकनृत्य

कच्ची घोड़ी की दमदार प्रस्तुति

ढोलनगाड़ों की थाप पर विदेशी मेहमानों का थिरकना

ये सभी नजारे उत्सव के माहौल को और भी रोमांचक बनाते रहे।
गांव के युवाओं और कलाकारों ने जोश और उमंग से सड़कों पर परेड निकाली, जिसमें कई थीम आधारित झांकियां भी शामिल रहीं।

चार गांवों की जादुई विरासत

बड़ोदिया के अलावा सथूर, ठिकारदा और आसपास के कई गांवों में भी यह पारंपरिक कला पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है। इन गांवों के लोग खुद को ‘जादुई कला के संरक्षक’ मानते हैं। राजा महाराजाओं के समय से चले आ रहे इन करतबों का उद्देश्य जनता का मनोरंजन करना तथा गांव की सामूहिक एकजुटता को बनाए रखना है।
भारी भीड़ को देखते हुए स्थानीय प्रशासन और आयोजन समिति द्वारा सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए।
भीड़ में मौजूद हर चेहरे पर आश्चर्य, रोमांच और परंपरा के प्रति श्रद्धा साफ झलक रही थी।


इन करतबों को देखकर लोगों के मन में यही सवाल उठता रहा
क्या ये जादू है? विज्ञान है? या दोनों का अनोखा मिश्रण?
गांव के लोग इसे श्रद्धा और आस्था से जुड़ी परंपरा बताते हैं।
जबकि कुछ विशेषज्ञ इसे वैज्ञानिक तकनीक और संतुलन कला का अद्भुत प्रयोग कहते हैं।

बूंदी का यह अनोखा घास भैरू महोत्सव केवल करतबों का मंच नहीं, बल्कि सैकड़ों साल पुरानी संस्कृति और लोक कला की धरोहर हैकृ
जिसे देख हर कोई यही कह उठता है
“ये हैरान कर देने वाला राजस्थान है!”

ऐसे आयोजनों से यह भी साबित होता है कि गांवों की पहचान केवल खेतीदृकिसानी तक सीमित नहीं, बल्कि यहां कला और कौशल का अनमोल खजाना भी छिपा है।

बूंदी का बड़ोदिया गांव आने वाले वर्षों में भी इसी तरह दुनिया को चकित करता रहेगा
परंपरा और जादू का यह संगम आज भी उतना ही जीवंत है, जितना सदियों पहले था।