प्रदेश में शहरी निकायों और पंचायतीराज संस्थाओं के चुनावों में शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य कर अनपढ़ों को चुनाव लड़ने से रोकने के प्रावधान पर फिलहाल असमंजस बना हुआ है। सरकार में उच्च स्तर पर इसे लेकर विचार मंथन चल रहा है लेकिन कोई फैसला नहीं होने से ‘वेट एंड वॉच’ की स्थिति बनी हुई है। इसे लेकर सरकार के भीतर अलग-अलग राय सामने आ रही है।
बता दें कि वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने 2015 में पंचायतीराज और शहरी निकाय चुनावों के लिए शैक्षणिक योग्यता लागू की थी। जिसे साल 2019 में गहलोत सरकार ने इस प्रावधान को हटा दिया।
कई नेताओं और संगठनों ने सरकार से अनपढ़ों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी की मांग की
सरकार के पास कई संगठनों और बीजेपी नेताओं ने पंचायत और शहरी निकायों के चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवारों का पढ़ा-लिखा होने की अनिवार्यता लागू करने की मांग की है। इसके लिए यूडीएच मंत्री और सीएम को भी लेटर लिखे गए हैं, मांग-पत्र भेजे गए हैं।
यूडीएच मंत्री बोले- दो पक्ष को लेकर बात चल रही
यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा- कुछ समूहों ने पंचायतीराज और निकाय चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू करने की मांग की है, उनका तर्क है कि शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य की जानी चाहिए। मांग-पत्र आता है तो सरकार में विचार मंथन होता है,कागज दौड़ते हैं, लेकिन अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। जब निर्णय होगा तो कानून में संशोधन भी हो जाएगा, पहले संशोधन हुए तो अब भी हो जाएंगे।

वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली सरकार में निकाय और पंचायतीराज चुनावों में शैक्षणिक योग्यता लागू की गई थी। शैक्षणिक योग्यता लागू करने का प्रस्ताव चुनावों से कुछ समय पहले ही किया गया था। उस वक्त इस फैसले पर कैबिनेट से सर्कुलेशन के जरिए मंजूरी ली गई थी, ताकि कैबिनेट की बैठक में कोई खिलाफ राय नहीं दे। उस समय लागू योग्यता जिसमें-
• वार्ड पंच अनपढ़ हो सकता था लेकिन सरपंच का आठवीं पास होना जरूरी था
• आदिवासी इलाके (टीएसपी एरिया) में सरपंच के लिए पांचवीं पास होना अनिवार्य किया था
• पंचायत समिति मेंबर और जिला परिष मेंबर के लिए 10वीं पास की योग्यता लागू की गई थी।
• पार्षद और निकाय प्रमुखों के लिए 10वीं पास की योग्यता की थी।
शैक्षणिक योग्यता को कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाया था, सरकार बनते ही हटाया था
पंचायतीराज संस्थाओं में शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान लागू करने का बीजेपी को गांवों में फायदा हुआ था। कांग्रेस की तुलना में बीजेपी से ज्यादा संख्या में स्थानीय जनप्रतिनिधि जीतकर आए थे। हालांकि शैक्षणिक योग्यता लागू करने का फैसला विवादित रहा, कांग्रेस ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया था।
कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस प्रावधान को हटाया था। इस प्रावधान की इसलिए भी आलोचना होती रही है कि विधायक और सांसद के लिए किसी तरह की शैक्षणिक योग्यता नहीं है, तो पंचायतीराज और शहरी निकायों में भी वही प्रावधान हो।
सरपंच चेक साइन करते हैं, इसलिए शैक्षणिक योग्यता की पैरवी
पंचायतीराज संस्थाओं और निकायों में जनप्रतिनिधियों के लए पढ़ा लिखा होने की अनिवार्यता की पैरवी करने वालों का तर्क है कि सरपंच चैक पर साइन करते हैं और वित्तीय फैसले करते हैं। निकाय प्रमुख भी वित्तीय और प्रशासनिक फैसले करते हैं, इसलिए उनका पढ़ा लिखा होना जरूरी है।
पंचायतों में गड़बड़ियों के कई मामले ऐसे भी सामने आए थे जिनमें सरपंचों को पता ही नहीं था कि उन्होंने कहां और किस दस्तावेज पर सिग्नेचर कर दिए। ऐसे कई सरपंचों को जेल भी जाना पड़ा था। इन्हीं उदाहरणों के आधार पर शैक्षणिक योग्यता लागू करने की मांग की जा रही है।
