महावीर वैष्णव महुआ
पारंपरिक कुम्हार समाज की आवाज़ अब सीधे प्रधानमंत्री के दरबार तक पहुँच गई है। मांडलगढ़ के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष जितेन्द्र प्रजापत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक भावनात्मक पत्र भेजा है, जो आज देशभर में चर्चा का केंद्र बनता जा रहा है।
इस पत्र में जितेन्द्र प्रजापत ने देश के करोड़ों कुम्हारों की पारंपरिक आजीविका पर मंडरा रहे संकट को लेकर गहरी चिंता जताते हुए कहा है की आवा-कजावा पद्धति, जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित मानी जाती है व कुम्हार समाज का पीढ़ियों से चला आ रहा पारम्परिक स्वरोजगार है जिससे सम्पूर्ण कुम्हार समाज के परिवारो की आजीविका चलती है उन्होंने इस पर लग रही प्रशासनिक रोकों को संविधान के आत्मनिर्भर भारत विज़न के विरुद्ध बताया है। उन्होंने मिट्टी खनन को रोकने और इस स्वरोजगार पर समयावधि की बंदीस लगाने का विरोध किया है क्यूंकि यह कुम्हार समाज की मूल आजीविका है!
जितेन्द्र ने कहा की सम्पूर्ण कुम्हार समाज की आजीविका मिट्टी के ऊपर निर्भर करती है इसी से हमारी समाज का लालन -पालन होता है “जब मिट्टी ही छिन ली जाए, तो कुम्हार समाज का जीवन कैसे बचेगा?”
“यह केवल कुम्हार समाज की पीड़ा नहीं, भारत की मिट्टी से जुड़े आत्मसम्मान की पुकार है।”

