भीलवाड़ा/आसींद।
विकास के खोखले दावों को उजागर करती एक दिल झकझोर देने वाली तस्वीर भीलवाड़ा जिले के आसींद उपखंड के मालासेरी गांव से सामने आई है। शनिवार को 12 वर्षीय हंसराज प्रजापत के आकस्मिक निधन के बाद उसका अंतिम संस्कार करना ग्रामीणों के लिए किसी संघर्ष से कम नहीं था।
लगातार बारिश के कारण श्मशान घाट की कच्ची और बदहाल ज़मीन कीचड़ में तब्दील हो गई। चिता को जलाए रखने के लिए टायरों का सहारा लेना पड़ा, और बारिश से बचाने के लिए लोहे की चादरें पकड़े ग्रामीण घंटों खड़े रहे। यह दृश्य किसी भी संवेदनशील व्यक्ति की आत्मा को झकझोरने वाला था।
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सवालों के घेरे में आसींद पंचायत समिति
यह घटना सिर्फ एक गांव की समस्या नहीं, बल्कि उन सैकड़ों ग्रामीण इलाकों की पीड़ा को उजागर करती है जहां श्मशान जैसी बुनियादी सुविधाएं अब भी सरकारी फाइलों में सिसक रही हैं। आसींद पंचायत समिति और संबंधित प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता ने एक मासूम बच्चे के अंतिम संस्कार को दया की प्रतीक्षा बना दिया।
परिजनों और ग्रामीणों ने इस अमानवीय स्थिति पर गहरा आक्रोश जताते हुए सवाल उठाया है –
“क्या सम्मानजनक विदाई भी अब सुविधा बन चुकी है?”
सरकारी योजनाओं, बजट और घोषणाओं के बीच ज़मीन पर सच्चाई आज भी कीचड़ और टायरों में गुम है।
अब तो जागो प्रशासन!
यह समय केवल शोक व्यक्त करने का नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही तय करने और ज़मीनी सुधार की ओर कदम बढ़ाने का है। यदि अब भी आसींद पंचायत समिति नहीं चेती, तो अगली चिता किसी और मासूम की गरिमा कुचल सकती है।
