शक्करगढ़
श्री संकट हरण हनुमत धाम में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन का आयोजन अत्यंत आध्यात्मिक, भावपूर्ण एवं मनोहारी रहा। कथा व्यास महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी जगदीश पुरी जी महाराज ने अपने ओजस्वी, मधुर और ज्ञानमयी वचनों से श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं में ऐसा बांधा कि पूरा पंडाल भक्ति-रस में डूब उठा।
स्वामी जगदीश पुरी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने कहा कि नन्हें कृष्ण की प्रत्येक लीला में गहन आध्यात्मिक संदेश निहित है। चाहे माखन चोरी की नटखट लीला हो, ग्वालबालों संग आनंदोत्सव हो अथवा यशोदा मैया की गोद में खेलते-हँसते श्रीकृष्ण—हर प्रसंग मानव जीवन को प्रेम, सरलता, निष्काम सेवा और आनंद का संदेश देता है। इन पावन प्रसंगों के दौरान पूरा पंडाल “नंदलाला की जय” के जयकारों से गूंजायमान हो उठा।
इसके पश्चात स्वामी जी ने गिरिराज पूजन एवं गोवर्धन लीला का प्रेरक वर्णन किया। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने गिरिराज की पूजा कर समस्त मानव समाज को प्रकृति-पूजन और पर्यावरण संरक्षण का अमूल्य संदेश दिया। इंद्र के अहंकार का नाश कर श्रीकृष्ण ने भक्त और भगवान के मधुर, अटूट व निश्छल संबंध को भी स्पष्ट किया। जब गोवर्धन धारण का दृश्य शब्दों में उकेरा गया, तो उपस्थित श्रद्धालु भाव-विभोर होकर “गोवर्धनधारी कन्हैयालाल की जय” के उद्घोष करने लगे।
छप्पन भोग की भव्य झांकी बनी आकर्षण का केंद्र
कथा के दौरान छप्पन भोग की भव्य झांकी सजाई गई, जिसमें विविध प्रकार के नैवेद्य अर्पित कर भगवान श्रीकृष्ण को मंगलमयी छप्पन भोग का भोग लगाया गया। इस दिव्य दृश्य ने भक्तों के हृदय में अपार आनंद की अनुभूति भर दी और पंडाल में रसमय भक्ति वातावरण अपने चरम पर पहुंच गया।
स्वामी जगदीश पुरी महाराज ने कहा कि भागवत कथा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानव जीवन को दिव्यता से जोड़ने का सशक्त माध्यम है। अहंकार के त्याग और सरल भक्ति के माध्यम से ही मनुष्य अपने जीवन में भगवान का साक्षात्कार कर सकता है। कथा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। इस अवसर पर गोपिचंद मीणा, विधायक जहाजपुर भी कथा में सहभागी बने।

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दिव्य संत समागम में महापुरुषों का अमृतवाणी संगम
कथा के दौरान आयोजित दिव्य संत समागम में ऋषिकेश के महामंडलेश्वर स्वामी विजयानंद पुरी महाराज ने अपने गहन, तत्त्वमय और जीवन परिवर्तित करने वाले उपदेशों से वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित कर दिया।
उन्होंने शास्त्रों के आधार पर बताया कि परमात्मा के दो स्वरूप माने गए हैं—विशेष और निष्विशेष। निष्विशेष स्वरूप सच्चिदानंद है, जो सभी जीवों की आत्मा है। अज्ञान और माया के कारण जीव अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे कोई धनी व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को निर्धन समझ ले, वैसे ही जीव भी अपनी अनंत शक्तियों के होते हुए स्वयं को दुखी और असहाय मान लेता है।
स्वामी विजयानंद पुरी महाराज ने ‘आवरण’ और ‘विक्षेप’ शक्तियों का उल्लेख करते हुए बताया कि यही शक्तियां हमारे सच्चे स्वरूप को ढककर हमें संसार में भटकाती हैं। उन्होंने कहा कि जीवों पर कृपा करने हेतु ही परमात्मा अवतार धारण करते हैं। भगवान के अनंत अवतार हैं, जिनमें दस को प्रमुख माना गया है। इन अद्भुत अवतारों का चिंतन करने से वासनाएं क्षीण होती हैं और अंतःकरण शुद्ध होता है।
उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व जन्मों के कर्मों के प्रभाव से इंद्रियां बहिर्मुख रहती हैं, जिससे मन संसार में भटकता रहता है। जब विशेष पुण्य उदित होते हैं, तब संतों की संगति प्राप्त होती है और जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है। संत समागम में ओंकारेश्वर के महामंडलेश्वर स्वामी सच्चिदानंद गिरी महाराज भी विशेष रूप से उपस्थित रहे।
