शिक्षा से ही संभव है विकसित भारत का निर्माण- डॉ. लालाराम बैरवाशाहपुरा-पेसवानी

BHILWARA
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“शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग करके आप दुनिया को बदल सकते हैं।” महान नेता नेल्सन मंडेला की इन पंक्तियों को उद्धृत करते हुए शाहपुरा विधायक डॉ. लालाराम बैरवा ने मंगलवार को राजकीय माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक संस्था प्रधान वाक्-पीठ, ब्लॉक शाहपुरा के दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह आयोजन श्री राजपूत धर्मशाला, धनोप माता के पवित्र प्रांगण में हुआ, जिसमें शाहपुरा ब्लॉक के सभी विद्यालयों के प्रधानाचार्य एवं शिक्षा से जुड़े अधिकारी उपस्थित रहे।
डॉ. बैरवा ने कार्यक्रम में उपस्थित संस्था प्रधानों को संबोधित करते हुए कहा कि विद्यालय केवल ज्ञान का केंद्र न होकर संस्कारों का भी पाठशाला होना चाहिए। विद्यार्थियों को पाठ्यक्रमीय शिक्षा के साथ-साथ मौलिक और नैतिक शिक्षा भी प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे न केवल अच्छे नागरिक बल्कि अच्छे इंसान भी बन सकें। उन्होंने कहा कि आज के समय में शिक्षा के साथ संस्कार देना अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने आगे कहा कि आजादी के बाद देश में कई शिक्षा नीतियां बनीं, लेकिन वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में करोड़ों नागरिकों के सुझावों के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का निर्माण हुआ। यह नीति विद्यार्थियों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के साथ-साथ भारतीय मूल्यों से भी जोड़ेगी। डॉ. बैरवा ने विश्वास जताया कि इस शिक्षा नीति से ऐसी पीढ़ी का निर्माण होगा, जो विकसित भारत के सपने को साकार करेगी।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सीबीईओ शाहपुरा गीता माहेश्वरी उपस्थित रहीं। साथ ही एसीबीईओ-1 डॉ. सत्यनारायण कुमावत, एसीबीईओ-2 भंवर बलाई, पूर्व मंडल अध्यक्ष उदय लाल सिरोठा, पीईईओ धनोप अभिषेक मिश्रा, धनोप सरपंच रिंकू देवी वैष्णव, प्रधानाचार्य जितेंद्र राय उपाध्याय, समाजसेवी लक्ष्मण वैष्णव सहित सभी विद्यालयों के प्रधानाचार्य मौजूद रहे। कार्यक्रम के दौरान वक्ताओं ने विद्यालयों में शिक्षण की गुणवत्ता को और अधिक सशक्त बनाने, विद्यार्थियों में रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने तथा शिक्षा को व्यवहारिक जीवन से जोड़ने पर बल दिया।
इस आयोजन के जरिए न केवल संस्था प्रधानों को शिक्षा की नई दिशा से अवगत कराया गया, बल्कि शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियों पर भी चर्चा की गई। कार्यक्रम का उद्देश्य यह संदेश देना था कि यदि शिक्षा और संस्कार साथ चलें, तो आने वाली पीढ़ी भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।