भीलवाड़ा । शहर से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर नेशनल हाइवे पर स्थित धुलखेड़ा की ऊंची-नीची पहाड़ियों पर बसा नाहर सिंहगी माता धाम आस्था, भक्ति और चमत्कारों का प्रतीक स्थल बन चुका है। नवरात्रि पर्व के अवसर पर यहां प्रतिदिन सप्तशती पाठ, भजन संध्या और गवरी नृत्य जैसे धार्मिक आयोजन श्रद्धालुओं को अध्यात्म और
भक्ति के रंग में रंग रहे हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि माता नाहर सिंह भूमि को फाड़कर स्वयं प्रकट हुई थीं। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पहले इस क्षेत्र में शेरों का विचरण होता था, लेकिन जिंदल खनन कंपनी के आने के बाद शेरों का दिखाई देना बंद हो गया। हालांकि आज भी यहां पैंथरों की गतिविधियां बनी रहती हैं, जिससे यह इलाका प्राकृतिक रहस्यों और धार्मिक आस्थाओं का संगम बन गया है।

कन्या पूजन ओर भोज का आयोजन हुआ
नाहर सिंहगी माता रानी के स्थान पर पंचकुंडीय यज्ञ का आयोजन किया गया वही ग्रामीणों ने माता रानी के दर्शन कर महा प्रसाद प्राप्त किया वही कन्या भोज के साथ ही गोपाल गुर्जर ने कन्याओं का पूजन किया और मां रूपी कन्याओं का आशीर्वाद प्राप्त किया गया ।

भक्तों की आस्था और नेताओं की श्रद्धा
राष्ट्रीय हिंदू भोज सेना के अध्यक्ष एवं गो-भक्त भाजपा नेता गोपाल गुर्जर ने नवरात्रि आयोजन के दौरान श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए माता के चमत्कारों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यहां भक्तों का तांता वर्षभर लगा रहता है और श्रद्धालुओं का विश्वास है कि नाहर सिंहगी माता के दरबार में सच्ची श्रद्धा से की गई प्रार्थना अवश्य फलदायी होती है।
स्वयंभू मूर्ति और पावन इतिहास
धाम के पुजारी ने बताया कि नाहर सिंहगी माता की मूर्ति स्वयं भूमि से प्रकट हुई थी। मंदिर से लगभग 300 मीटर नीचे भेरूनाथ का प्राचीन स्थान भी स्थित है, जहां पीढ़ियों से पुजारी परिवार पूजा-अर्चना करता आ रहा है। मान्यता है कि पूर्वजों के शरीर में भेरूजी ने प्रवेश कर इस पावन स्थल की पहचान करवाई थी।

चमत्कारों की अनगिनत कथाएं
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह स्थल कई चमत्कारों का साक्षी रहा है। वर्षों पूर्व जब एक कंपनी ने पहाड़ी क्षेत्र को खंडित कर खनन का प्रयास किया, तब उनके सभी उपकरण अचानक खराब होकर कबाड़ में बदल गए। लोगों का विश्वास है कि माता की कृपा से ही यह पावन धाम आज भी सुरक्षित और अक्षुण्ण बना हुआ है।
नवरात्रि में भक्तों का उत्साह
नवरात्रि के चलते इन दिनों धाम में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। सप्तशती पाठ और भजन संध्या के मधुर स्वर वातावरण को भक्तिमय बना रहे हैं, वहीं गवरी नृत्य की प्रस्तुतियां ग्रामीण संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं।
