खेल दिवस पर विशेष – उरना गाँव की खेल परंपरा में धर्मचंद मीना की अमिट छाप

BHILWARA
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कबड्डी में चार साल तक अव्वल रहने वाली टीम को दी थी नई पहचान
(शक्करगढ़)।
गाँव उरना ने खेलों की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है। इस पहचान के पीछे सबसे बड़ा योगदान रहा है धर्मचंद मीना का। भले ही वे शारीरिक शिक्षक नहीं थे, लेकिन खेलों के प्रति उनकी लगन और मेहनत ने गाँव के बच्चों को नई दिशा दी। उनकी देखरेख में गाँव की कबड्डी टीम ने लगातार चार वर्षों तक अव्वल स्थान प्राप्त किया।



प्राचार्य पद पर पदोन्नत होने के बाद अब गाँव और खेल जगत में उनकी कमी गहराई से महसूस की जा रही है। ग्रामीणों और खिलाड़ियों का कहना है कि धर्मचंद मीना ने जिस निष्ठा से खिलाड़ियों को तैयार किया, वही आज गाँव की खेल परंपरा की नींव बन चुकी है।

खेल मैदान में हुई पूजा-अर्चना

खेल दिवस के अवसर पर शुक्रवार को गाँव के शारीरिक शिक्षक शकेंद्र कुमार और यशवंत मीना ने परंपरा के अनुसार खेल मैदान की पूजा-अर्चना की। इसके बाद बच्चों को सॉफ्टबॉल खेल की तैयारियों में लगाया गया। छात्र-छात्राओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और खेल दिवस को उल्लासपूर्वक मनाया

धर्मचंद मीना बच्चो के खेल गुरु


स्थानीय शिक्षकों का कहना है कि गाँव में बच्चों को कबड्डी और सॉफ्टबॉल जैसे खेलों के लिए नियमित रूप से प्रशिक्षित किया जा रहा है। अब तक कई खिलाड़ी जिला और राज्य स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखा चुके हैं। खिलाड़ियों के प्रदर्शन से उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले समय में उरना गाँव के बच्चे राष्ट्रीय स्तर तक भी अपनी पहचान बनाएंगे ग्रामीणों ने कहा कि धर्मचंद मीना द्वारा शुरू की गई खेल परंपरा ने गाँव को नई दिशा दी। उनकी मेहनत और सोच से ही उरना गाँव को “खेल गाँव” की पहचान मिली। यद्यपि अब उनकी अनुपस्थिति खलती है, लेकिन उनके प्रयासों की बदौलत बच्चों में खेल के प्रति जोश और आत्मविश्वास कायम है खेल दिवस का यह आयोजन सिर्फ खेल भावना तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बच्चों को अनुशासन, टीम भावना और आत्मविश्वास का पाठ भी पढ़ा गया।